*अगर आप पर विपत्ति आवे तो.....*
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।🌹
आत्मीय परिजन, आप सभी को सादर प्रणाम 🙏!
आज का शीर्षक
*अगर आप पर विपत्ति आवे तो.....*
विपत्ति से घबराओ मत। विपत्ति कड़वी जरूर होती है, पर याद रखो, चिरायता और नीम जैसी कड़वी चीजों से ही ताप नाश होकर शरीर निर्मल होता है।
विपत्ति में कभी निराश मत होओ। याद रखो, अन्न उपजा कर संसार को सुखी कर देने वाली जल की बूंदें काली घटा से ही बरसती हैं।
विपत्ति असल में उन्हीं को विशेष दुःख देती है, जो उससे डरते हैं। जिसका मन दृढ़ हो, संसार की अनित्यता का अनुभव करता हो और हर एक में भगवान की दया देखकर निडर रहता हो, उसके लिए विपत्ति फूलों की सेज के समान है।
जैसे रास्ते में दूर से पहाड़ियों को देखकर मुसाफिर घबड़ा उठता है कि मैं इन्हें कैसे पार करूंगा, लेकिन पास पहुँचने पर वे उतनी कठिन नहीं मालूम होती, यही हाल विपत्तियों का है। मनुष्य दूर से उन्हें देखकर घबरा उठता है और दुःखी होता है, परन्तु जब वे ही सिर पर आ पड़ती हैं तो धीरज रखने से थोड़ी सी पीड़ा पहुँचाकर ही नष्ट हो जाती है।
*जिस तरह खरादे बिना सुन्दर मूर्ति नहीं बनती उसी तरह विपत्ति से गढ़े बिना मनुष्य का हृदय सुन्दर नहीं बनता। विपत्ति प्रेम की कसौटी है। विपत्ति में पड़े हुए बन्धु बान्धवों में तुम्हारा प्रेम बढ़े और वह तुम्हें निरभिमान बनाकर आदर के साथ उनकी सेवा करने को मजबूर कर दे, तभी समझो कि तुम्हारा प्रेम असली है। इसी प्रकार तुम्हारे ऊपर विपत्ति पड़ने पर तुम्हारे बन्धु बांधवों और मित्रों की प्रेम परीक्षा हो सकती है।*
काले बादलों के अन्धेरे में ही बिजली की चमक छिपी रहती है, विपत्ति अर्थात् दुःख के बाद सुख, निराशा के बाद आशा, पतझड़ के बाद वसन्त ही सृष्टि का नियम है।
याद रहे कि *जब तक सुख की एकरसता को वेदना की विषमता का गहरा आघात नहीं लगता तब तक जीवन के यथार्थ सत्य का परिचय नहीं मिल सकता।*
विपत्ति पड़ने पर पाँच प्रकार से विचार करो-
1- *तुम्हारे अपने ही कर्म का फल है, इसे भोग लोगे तो तुम कर्म के एक कठिन बन्धन से छूट जाओगे।*
2- *विपत्ति तुम्हारे विश्वास की कसौटी है, इसमें न घबड़ाओगे तो तुम्हें भगवान की कृपा प्राप्त होगी।*
3- *विपत्ति मंगलमय भगवान का विधान है और उनका विधान कल्याण कारी ही होता है। इस विपत्ति में भी तुम्हारा कल्याण ही भरा है।*
4- *विपत्ति के रूप में जो कुछ तुम्हें प्राप्त होता है, यह ऐसा ही होने को था, नयी चीज कुछ भी नहीं बन रही है, भगवान का पहले से रचकर रखा हुआ ही दृश्य सामने आता है।*
5- *जिस शरीर को, जिस नाम को और जिस नाम तथा शरीर के सम्बन्ध को सच्चा मानकर तुम विपत्ति से घबराते हो, वह शरीर, नाम और सम्बन्ध सब आरोप मात्र हैं, इस जन्म से पहले भी तुम्हारा नाम, रूप और सम्बन्ध था, परन्तु आज उससे तुम्हारा कोई सरोकार नहीं है, यही हाल इसका भी है, फिर विपत्ति में घबड़ाना तो मूर्खता ही है, क्योंकि विपत्ति का अनुभव शरीर, नाम और इनके सम्बन्ध को लेकर ही होता है।*
✍️ वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगऋषि, परमपूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 पृष्ठ संख्या १३-१४, अखण्ड ज्योति, दिसंबर -१९५४
(श्री ज्वाला प्रसाद गुप्त, एम.ए.)
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